
मंदिर के पुजारी धरमवीर कहते हैं कि ये मंदिर महाभारत काल में पांडवों के गुरु धूम्र ऋषि का है. यहीं ऋषि के आश्रम में रुककर पांचो पांडवों ने अपनी मां कुंती और अपनी पत्नी द्रोपदी के साथ अज्ञातवास का कुछ समय काटा था.
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