पाकिस्तान को गले लगाना अमेरिका को पड़ सकता है महंगा, क्यों अपने फैसले पर पछताने पर मजबूर होंगे बाइडेन?

वॉशिंगटन: कुछ दिनों पहले अमेरिका ने ऐलान किया था कि वह पाकिस्तान एयरफोर्स (PAF) के पास मौजूद फाइटर जेट एफ-16 को अपग्रेड करेगा। इसके साथ ही एक पैकेज के तहत की सरकार ने 450 मिलियन डॉलर देने का ऐलान भी कर दिया। इसके बाद बाइडेन ने गुरुवार को उंगा से अलग पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात की। पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते तो पिछले करीब एक दशक से बिगड़े थे, अब पटरी पर वापस लौटते नजर आ रहे हैं। जहां पाकिस्तान में इस ताजा घटनाक्रम पर खुशी का माहौल है तो वहीं विदेश नीति के जानकार मान रहे हैं कि आतंकवाद को पनाह देने वाले देश को गले लगाकर बाइडेन एक बड़ी गलती कर रहे हैं। गलतियों को दोहरा रहे बाइडेन विदेश नीति के जानकार और चीन-पाकिस्तान को करीब से समझने वाले ब्रहृम चेलानी की मानें तो बाइडेन पाकिस्तान को लाड़-प्यार दिखाकर पुरानी गलतियों को दोहरा रहे हैं। उनकी मानें तो कई राष्ट्रपति इस बात को नजरअंदाज करते रहे कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच लंबी साझेदारी का फायदा आईएसआई ने उठाया। उसने इस दोस्ती की आड़ में कई आतंकियों को पनाह दी और इसकी वजह से पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन गया। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान के कई आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल आतंकी करार दिया है। अमेरिका का दुश्मन और अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की मिलिट्री एकेडमी के करीब ही रह रहा था। वादे के बाद भी किया निराश हाल ही में जब अमेरिका ने 9/11 की 21वीं बरसी मनाई तो बाइडेन ने वादा किया कि जहां कहीं भी आतंकी छिपे होंगे उन्हें तलाश कर मारा जाएगा। लेकिन अपने वादे के बाद भी बाइडेन ने अपने पूर्वाधिकारी डोनाल्ड ट्रंप के एक फैसले को पलटकर निराश कर दिया। बाइडेन चाहते थे पाकिस्तान की उस मजबूरी का फायदा उठा सकते थे जहां पर उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से एक लोन की सख्त दरकार है। इसकी जगह बाइडेन प्रशासन ने पाक को 1.1 अरब डॉलर वाला मदद का पैकेज हासिल करने में मदद की। अमेरिका का अपना फायदा यह सिर्फ एक फायदा नहीं है जो पाकिस्तान को बाइडेन प्रशासन से मिला है। अमेरिका और चीन की मदद से हो सकता है कि पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर भी आ जाए। हकीकत यह है कि पाकिस्तान की अथॉरिटीज ने उन समस्याओं को दूर ही नहीं किया जिनकी वजह से उसे साल 2018 में ग्रे लिस्ट में डाला गया था। चेलानी मानते हैं कि पाकिस्तान को तो ब्लैक लिस्ट में आना चाहिए था। अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ रही थीं और अमेरिका को उसकी जरूरत थी इसलिए ब्लैक लिस्ट के खिलाफ लॉबिंग की गई। कैश से जूझते पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर की मदद से बाइडेन ने अमेरिका के लिए ही मुश्किल पैदा कर दी हैं। वह जानते थे कि यह फैसला, भारत के साथ उसके करीबी रणनीतिक रिश्ते को प्रभावित कर सकता है। इसके बावजूद पाकिस्तान के लिए यह मदद मंजूरी की गई। फिर से बढ़ सकता है आतंकवाद कई दशकों तक अमेरिका ने पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाया है। चाहे वह अफगानिस्तान में सोवियत युद्ध हो या फिर पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम। बाइडेन प्रशासन ने एफ-16 की डील की मंजूरी के लिए जो तर्क दिया वह भी हैरान करने वाला था। बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों की मानें तो अपग्रेडेड एफ-16 काउंटर-टेररिज्म में पाकिस्तान की मदद करेंगे। अमेरिका ने पाकिस्तान पर एक भी प्रतिबंध नहीं लगाया जबकि उसकी शह पर ही तालिबान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की हत्या की। अमेरिकी विदेश मंत्री एंथोनी ब्लिंकन चाहते हैं कि अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते और आगे बढ़ें। बाइडेन प्रशासन का फैसला पाकिस्तान में एक बार फिर आतंकियों की पनाहगार को मजबूत करेगा। दुनिया पर एक बार फिर आतंकवाद और जेहाद का खतरा मंडराने लगा है। कहीं न कहीं जो बाइडेन इसके लिए जिम्मेदार होंगे।
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