संपादकीय: आपके शब्द खून के धब्बों को छिपा नहीं सकते... संयुक्त राष्ट्र में जयशंकर का जोरदार भाषण

की बैठक में भारत ने एक बार फिर आतंकवाद के मसले पर मजबूती से अपनी बात रखते हुए और जैसे देशों को कटघरे में खड़ा कर दिया। विदेश मंत्री ने शनिवार को इस मंच से दिए अपने भाषण में नाम किसी का नहीं लिया, लेकिन इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश भी नहीं रहने दी कि उनका इशारा किन देशों की तरफ है। उन्होंने कहा कि जो यूएनएससी 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के तहत घोषित आतंकवादी का बचाव करने की हद तक राजनीतिकरण करते हैं, वे खुद को भी खतरे में डाल रहे हैं। वे न तो अपने हितों की रक्षा कर रहे हैं और न ही अपनी साख की। जाहिर है, उनका इशारा पाकिस्तान और चीन की ओर था, जो भारत और उसके मित्र देशों की ओर से पाकिस्तान में छिपे कुख्यात आतंकवादियों को की 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के तहत काली सूची में डालने के प्रयासों में लगातार बाधा डाल रहे हैं। इससे पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए भाषण का भी भारत ने करारा जवाब दिया। शरीफ ने अपने भाषण में खुद को दोषमुक्त करते हुए भारत पर आरोप मढ़ने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान तो भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाना चाहता है, लेकिन इस क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता तभी कायम हो सकती है, जब कश्मीर का विवाद हल हो जाए। इसके साथ ही उन्होंने इस्लामोफोबिया को लेकर भी भारत पर आरोप लगाए। जवाब देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत पर झूठे आरोप इसलिए लगाए हैं क्योंकि उसे अपने कृत्यों पर परदा डालना था। जो देश पड़ोसियों से शांति चाहता है वह सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देता और न ही मुंबई आतंकी हमले के साजिशकर्ताओं को शरण और संरक्षण देता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान लगातार ऐसे कृत्यों का बचाव कर रहा है, जिसे दुनिया अस्वीकार्य मानती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान के साथ ही खुद को उसका सच्चा दोस्त साबित करने में लगा चीन आतंकवाद जैसे मुद्दे पर लगातार दोहरा रवैया अपना रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर ने ठीक कहा कि आप चाहे जैसी भी चिकनी-चुपड़ी बातें कर लें, आपके शब्द खून के धब्बों को छिपा नहीं सकते। सबको समझना होगा कि सिर्फ बातों से हल नहीं होगी। यह पूरी इंसानियत के सामने एक चुनौती है, जो हर देश और समाज के लिए खतरा बना हुआ है। सभी देश अलग-अलग रूपों में इसे झेल भी रहे हैं। ऐसे में छोटे-मोटे तात्कालिक फायदों के लिए कोई न कोई बहाना बनाकर इसका बचाव करना आतंकवाद विरोधी लड़ाई को कमजोर करना है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।


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