ब्लैक मनी को छोड़िए कैश 70% बढ़ गया! नोटबंदी सही थी या गलत?

नई दिल्ली : 'आज आधी रात से 500 और 1,000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नही रहेंगे।' 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे पीएम मोदी (PM Modi) ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह घोषणा कर सभी को चौंका दिया था। इस बात को छह साल पूरे हो रहे हैं। नोटबंदी (Demonetisation) के फैसले के पीछे यह तर्क दिया गया था कि इससे भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी (Blackmoney), नकली नोट और आतंकवाद खत्म हो जाएगा। लेकिन ये सब मुद्दे तो नोटबंदी के बाद भी बने हुए हैं। ऐसे में यह बहस बड़ी आम है कि नोटबंदी से क्या फायदा हुआ। क्या नोटबंदी पूरी तरह विफल रही? विपक्ष के कुछ लोग तो नोटबंदी को राष्ट्रीय आपदा भी बताते हैं। दरअसल, नोटबंदी का फैसला सही था या गलत, इसका जवाब देना मुश्किल है। नोटबंदी का मिला-जुला असर रहा है। आइए जानते हैं कि नोटबंदी का आखिर क्या असर हुआ है। क्या कम हुआ काला धन? नोटबंदी के फैसले के समय सबसे बड़ी बात यह कही गई थी कि इससे काला धन (Black Money) खत्म हो जाएगा। सरकार का मानना था कि काला धन कैश में होता है। सरकार का मानना था कि 500, 1,000 के नोट बंद होने से 3-4 लाख करोड़ रुपये वापस नहीं लौटेंगे। क्योंकि जिसके पास काला धन है, वह उन्हें बैंक में जमा कराने से डरेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नोटबंदी में करीब 15 लाख करोड़ रुपये के नोट बंद हुए थे। इसमें से सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपये ही आरबीआई के पास वापस नहीं आए। माना जाता है कि जिसके पास काला धन था, उन्होंने उसे सफेद कर लिया। इस तरह नोटबंदी काले धन के मामले में पूरी तरह विफल रही। क्या नोटबंदी राष्ट्रीय आपदा थी? नोटबंदी वाले साल यानी 2016-17 में देश की जीडीपी (GDP) 8.3% की दर से बढ़ी। इससे यह तो स्पष्ट है कि नोटबंदी कोई आपदा नहीं थी। इकनॉमी के जानकार स्‍वामीनाथन अय्यर के अनुसार, आलोचक यह कहते हैं कि नोटबंदी से GDP का 2.5% चला गया। इसका मतलब है कि बिना नोटबंदी GDP विकास दर 10.8% रही होती। यह बिल्‍कुल बचकाना है। नोटंबंदी एक झटका थी, आपदा नहीं। नोटबंदी के कारण लोग चुकाने लगे टैक्स आरबीआई मौद्रिक नीति समिति की सदस्य अशिमा गोयल ने हाल ही में कहा कि नोटबंदी के कारण लोग टैक्स चुकाने लगे हैं। कर राजस्व में बढ़ोतरी गोयल की बात को सच साबित करती है। हम इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स और जीएसटी में अच्छी खासी बढ़ोतरी देख रहे हैं। केंद्रीय टैक्‍स रेवेन्‍यू सालाना अनुमान के रिकॉर्ड 53% तक पहुंच गया। साल 2017 में अलग-अलग तरह के राज्‍यवार शुल्‍क की जगह ऑल-इंडिया लेवल पर एकसमान टैक्‍स स्‍ट्रक्‍चर आया। अब पांच साल बाद हर महीने करीब 1.40 लाख करोड़ रुपये GST जमा हो रहा है। अक्‍टूबर में GST कलेक्‍शन 1.52 लाख करोड़ रुपये का हुआ। पिछले 12 महीनों का GST रेवेन्‍यू GDP के 7% के बराबर रहा। यह कर चोरी में नकेल और स्‍थायी ढांचागत सुधारों के चलते संभव हो सका है। इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स इस छमाही में पिछले साल के मुकाबले 24 फीसदी अधिक है। टैक्स बढ़ने से घाटे का बोझ घटा केंद्र सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है। इससे खर्चे बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार का घाटा काबू में है। मुफ्त राशन योजना, फर्जिलाइजर्स और पेट्रोलियम उत्‍पादों पर ज्‍यादा सब्सिडी और उच्‍च ब्‍याज भुगतानों के बावजूद अर्द्धवार्षिक राजकोषीय घाटा सालाना अनुमान के सिर्फ 35% पर है। जबकि ऐतिहासिक औसत 77% का रहा है। इसके पीछे मुख्‍य वजह यह रही कि केंद्रीय टैक्‍स रेवेन्‍यू सालाना अनुमान के रिकॉर्ड 53% तक पहुंच गया है। डिजिटल पेमेंट के मामले में आई क्रांति नोटबंदी का एक सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि आज भारत डिजिटल पेमेंट (Digital Payment) के मामले में काफी आगे है। डिजिटल पेमेंट में जोरदार उछाल आया है। आजकल कई लोगों ने तो जेब में कैश रखना ही बंद कर दिया है। मोबाइल से ही डिजिटल पेमेंट कर दिया जाता है। आज जूते पॉलिस करने वाले से लेकर सब्जी वाले और गोलगप्पे वाले के पास भी क्यूआर कोड होता है। दान भी आजकल क्यूआर कोड से होने लगा है। यह डिजिटल पेमेंट के मामले में किसी क्रांति से कम नहीं है। यूपीआई ने इसे काफी आसान बना दिया है। फोन पे और बॉस्टन कंसलटिंग ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2026 तक भारत में हर तीन में दो लेनदेन डिजिटल होंगे। इससे लेनदेन में काफी पारदर्शिता होगी। कैश आज भी किंग भले ही डिजिटल पेमेंट में काफी अधिक उछाल आया हो, लेकिन आज भी कैश किंग बना हुआ है। देश में जनता के बीच मौजूद नकदी 21 अक्टूबर 2022 तक 30.88 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। यह दर्शाता है कि नोटबंदी के छह साल बाद भी देश में नकदी का भरपूर उपयोग जारी है। यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में चलन में मौजूद मुद्रा के स्तर से 71.84 प्रतिशत अधिक है। साल 2016 में कैश का सर्कुलेशन 18 लाख करोड़ रुपये के आसपास था। क्या होता नोटबंदी का सही तरीका स्‍वामीनाथन अय्यर के अनुसार नोटबंदी का सही तरीका यह होता कि साल 2015 में 2,000 रुपये और 5,000 रुपये के नए नोट लॉन्‍च किए जाते। ब्‍लैक मनी जमा करने वाले इन नोटों पर टूट पड़ते। फिर साल 2016 में सरकार इन नोटों को बैन कर सकती थी। 500 और 1000 रुपये के नोट को नहीं छूना था, क्‍योंकि इन्हें आम जनता और छोटे व्‍यापारी इस्‍तेमाल करते थे। अगर ऐसे नोटबंदी करते तो काले धन के जमाखोर भी पकड़े जाते और जनता को परेशानी भी नहीं होती। अगर योजना ठीक तरह से लागू की गई होती तो कैश की किल्‍लत नहीं होती। नए नोटों को पहले ही बैंकों तक पहुंचा देना था। सरकार को लगा था कि बड़ी मात्रा में ब्‍लैक मनी रखने वालों का कैश बेकार हो जाएगा, लेकिन एक तरह से सारे नोट्स एक्‍सचेंज हो गए।


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