जय महाकाल का उद्घोष, रूद्राक्ष की माला... मोदी के रास्ते पर चलकर उनकी काट ढूंढ रहे राहुल

उज्जैनः 11 अक्टूबर, 2022, फिर 29 नवंबर, 2022। देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों के दो सबसे बड़े नेता। एक ही जगह, लेकिन लक्ष्य अलग-अलग. समानता केवल इतनी कि दोनों एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन क्या दोनों ने इसके लिए एक ही तरीका अपनाया है। क्या यह सच है कि हिंदुत्व के रास्ते पर चल रही एक पार्टी को सत्ता से अपदस्थ करने के लिए दूसरी पार्टी ने भी उसी का रास्ता अख्तियार कर लिया है। दोनों की विचारधाराएं बिलकुल अलग हैं, फिर रास्ते एक जैसे कैसे हो सकते हैं। संदेह पैदा होना लाजिमी है, लेकिन तस्वीरें तो यही कहानी कहती हैं। अब जरा इन तस्वीरों पर गौर कीजिए। पहली तस्वीर 11 अक्टूबर की है जब प्रधानमंत्री उज्जैन आए थे और महाकाल लोक का का लोकार्पण किया था। भगवा वस्त्र पहने मोदी ने इसके बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था। दूसरी तस्वीर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष की है जो 29 नवंबर को उज्जैन में थे। राहुल ने भी मोदी की तरह पहले भगवान महाकाल का आशीर्वाद लिया, फिर जनसभा को संबोधित किया। समानताओं की कमी नहीं पहले दोनों तस्वीरों की समानताओं पर गौर कीजिए। मोदी के गले में रूद्राक्ष की माला है। भगवा वस्त्र पहने मोदी शिव भक्ति में लीन नजर आते हैं। राहुल की तस्वीर भी इससे खास अलग नहीं हगै। गले में रूद्राक्ष की माला पहने राहुल भी मोदी की तरह महाकाल की अराधना में लीन दिखाई पड़ते हैं। धोती पहने राहुल के शरीर पर भी लाल रंग का अंगवस्त्र है जो उन्हें महाकाल मंदिर के पुजारियों ने भेंट किया। तो क्या दोनों एक ही रास्ते पर चल रहे हैं। इस पर भी नजर डालिए समानताएं यूहीं खत्म नहीं होतीं। महाकाल के दर्शन के बाद दोनों ने जनसभाओं को संबोधित किया। दोनों ने अपने भाषण की शुरुआत जय महाकाल के उद्घोष से की। दोनों तपस्वी के वेश में नजर आए। सांसारिकता से दूर, लेकिन राजनीतिक उद्देश्य से परिपूर्ण। रास्ते अलग, लेकिन लक्ष्य एक इसमें कोई संदेह नहीं कि दोनों एक ही रास्ते पर चल रहे हैं और दोनों का लक्ष्य भी समान है- एक दूसरे को मात देना। फर्क सिर्फ इतना है कि मोदी के हिंदुत्व की काट ढूंढने के लिए राहुल ने तथाकथित सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाया है। महाकाल से पहले राहुल भगवान ओंकारेश्वर के दर्शन भी कर चुके हैं। अपनी के दौरान राहुल धर्म से लेकर राजनीति तक- कोई हथियार आजमाने से चूकना नहीं चाहते। अब देखना यह है कि मोदी के हिंदुत्व के मुकाबले उनका सॉफ्ट हिंदुत्व कितना कामयाब रहता है।


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