आखिर कश्मकश से क्यों बाहर नहीं निकल पा रही कांग्रेस? अब नेता विपक्ष को तय करने में उलझी पार्टी

अहमदाबाद: गुजरात विधानसभा चुनावों के जब नतीजे आए थे। तो ये उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस जरूरी बदलाव करेगी। चुनाव परिणामों के 10 दिन बाद पार्टी किंतु-परंतु में अटकी हुई है। कांग्रेस को 15वीं विधानसभा में नेता विपक्ष के लिए जरूरी 18 सीटें भी हासिल नहीं हुई है, लेकिन इसके बाद भी नेताओं में नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए खींचतान मची है। तो वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी ने विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, दंडक समेत सभी पदों के लिए चुनाव कर चुकी है। बड़ा सवाल यह है कि लगभग सबकुछ गंवा चुकी कांग्रेस, आखिर कंफर्ट जोन से बाहर क्यों नहीं निकल पा रही है? न फैसले लेने में तेजी दिख रही, न ही नवसर्जन के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नजर आ रही है। तो कांग्रेस कैसे अपनी बची-खुची जमीन बचाएगी। हार के बाद भी नहीं हलचल बीजेपी की प्रचंड सुनामी में कांग्रेस सिर्फ 17 सीटें जीत पाई है। बीजेपी के हिसाब से देखें तो मुख्यमंत्री को जोड़कर इतना बड़ा तो सरकार का मंत्रिमंडल है। सबसे बुरी स्थिति में पहुंचने के बाद भी पार्टी बड़ी सर्जरी को तैयार नहीं है। गुजरात के चुनाव प्रभारी रहे डॉ. रघु शर्मा (Raghu Sharma) अपना इस्तीफा देकर राजस्थान वापसी कर चुके है। तो वहीं गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर () ने जोन के हिसाब से समीक्षा करके इतिश्री कर ली है। इस सब के बीच बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस कब नए नेताओं को कमान सौपेंगी। जब ठाकोर और राठवा की जोड़ी जब कमाल नहीं कर पाई तो फिर उनके बने रहने के क्या मायने हैं। पिछले चुनावों में जब कांग्रेस हारी थी तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अमित चावड़ा ने अपना इस्तीफा दे दिया था, हालांकि पार्टी ने काफी महीनों बाद उसे स्वीकार किया था। तब भी नए अध्यक्ष के चुनाव देरी हुई थी। खाली करनी होगी जगह पार्टी के जिन नेताओं पर जीतने की जिम्मेदारी थी। अब वे हार की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहे हैं? इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. जयेश शाह कहते हैं गुजरात में कांग्रेस के स्थापित नेताओं के चंगुल में है। जब तक ये नेता नहीं हटेंगे, पार्टी का नवसर्जन मुश्किल है। ऐसे में जब बीजेपी नेताओं को बदल रही है। तब भी कांग्रेस कुछ परिवारों को बपौती बनी हुई है। परिवारवाद पूरी तरह से खत्म करना होगा। में इसकी एक लंबी फेहरिस्त है। भरत सिंह सोलंकी (Bharat Singh Solanki) पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के बेटे हैं तो अमित चावड़ा का भी जुड़ाव इसी परिवार से है। सिद्धार्थ पटेल पूर्व सीएम चिमनभाई पटेल के बेटे हैं। तो खेड़ब्रह्मा से जीते तुषार चौधरी पूर्व सीएम अमर सिंह चौधरी के बेटे है। पार्टी की दिक्कत ये है वह आठ से 10 नेताओं के आगे नहीं देख पा रही है। यही वजह है कि अभी तक पार्टी विधानसभा में नेता का नाम तय करके घोषित नहीं कर पाई है। दोनों नेता विपक्ष हार गए 2017 के चुनाव जब कांग्रेस को 77 सीटें हासिल हुई थीं, तो पार्टी ने परेश धनाणी को नेता विपक्ष बनाया था, लेकिन जब 2019 के लाेकसभा चुनावों कांग्रेस 26 में से एक भी सीट नहीं जीती तो प्रदेश अध्यक्ष रहे अमित चावड़ा पद छोड़ा था। इसके बाद जगदीश ठाकोर को अध्यक्ष और सुखराम राठवा को नेता प्रतिपक्ष बनाया था, ठाकोर चुनाव नहीं लड़े। सुखराम राठवा अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। उनके गृह जिले की तीनों सीटें बीजेपी में जीती। पूरा जिला भगवा रंग में रंग गया। पार्टी अपने मजबूत गढ़ नहीं बचा पाई, एनसीपी (NCP) से गठबंधन भी फ्लॉप साबित हुआ, लेकिन किसी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे तक की पेशकश नहीं की। नए प्रयोगों से होगा नवसर्जन गुजरात में अगर कांग्रेस को नवसर्जन करना है तो उसे नए प्रगोग करने होंगे। सोशल मीडिया पर कार्यकर्ता अपना दर्द लिख भी रहे हैं पार्टी नेतृत्व से नई पीढ़ी को कमान देने की मांग कर रहे हैं, ताकि कांग्रेस बीजेपी से लड़ सके और आप से बच सके। युवा अंगड़ाई के तौर उभरे अनंत पटेल () , जिग्नेश मेवाणी (), गेनीबेन ठाकोर (Geniben thakor) और इमरान खेड़ावाला (Imran khedawala) ऐसे चेहरे हैं जिनको आगे करके पार्टी एक नया प्रयोग कर सकती है, लेकिन किंतु-परंतु में फंसी कांग्रेस में इसकी गुंजाइश कम दिख रही है। अगर कांग्रेस इस बड़ी हार के बाद नहीं जागती है तो आने वाले दिनों में स्थिति और बदतर होगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) ने राष्ट्रीय अधिवेशन में गुजरात को लेकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
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