संपादकीय : पीछे छूटा हिजाब, ईरानी महिलाओं के संघर्ष की सफलता के पीछे की कहानी
ईरान से आ रही ताजा खबरें लोकतांत्रिक भावनाओं में यकीन रखने वाले दुनिया भर के लोगों का उत्साह बढ़ाने वाली हैं। इन खबरों के मुताबिक वहां की नैतिकता पुलिस को भंग करने का फैसला हो गया है। हालांकि अटॉर्नी जनरल की तरफ से दिए गए इस आशय के वक्तव्य की न तो सरकार ने तत्काल आधिकारिक तौर पर पुष्टि की है और न ही आंदोलनकारी फिलहाल इसे गंभीरता से लेने को तैयार हैं। ऐसा लगता है कि सरकार इस फैसले की आधिकारिक घोषणा से पहले यह देख लेना चाहती है कि इसका देश के लोगों पर अपेक्षित असर होगा या नहीं। दरअसल, हिजाब लादे जाने के खिलाफ शुरू हुआ और पिछले करीब दो महीने से जारी आंदोलन न केवल व्यापक रूप ले चुका है बल्कि इसकी मांगों का दायरा भी काफी फैल चुका है। सरकार के कामकाज से जुडे अन्य मुद्दे भी इसमें शामिल हो चुके हैं। संभवत: इसीलिए आंदोलनकारियों के नेतृत्व का एक हिस्सा कह रहा है कि सरकार के इन संकेतों का उसके लिए कोई खास मतलब नहीं है। जाहिर है, ईरान के हालात आगे क्या मोड़ लेते हैं, यह स्पष्ट होने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन जो कुछ हो चुका है, उसका लेखा-जोखा भी इतना तो बता ही देता है कि ईरान की बहादुर महिलाओं ने पूरी दुनिया के सामने संघर्ष की एक नई मिसाल पेश कर दी है। दो महीने पहले हिजाब कानून का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार की गई महसा अमीनी की कथित तौर पर पुलिस प्रताड़ना के चलते हुई मौत के बाद जिस तरह से महिलाएं सड़कों पर आईं और हिजाब के खिलाफ अहिंसक तरीकों से विरोध किया, वह वाकई काबिले तारीफ है। हालांकि यह बात सही है कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ही ईरान में तरह-तरह की नैतिकता पुलिस अस्तित्व में आती रही है, और यह भी कि नैतिकता पुलिस भंग होने का मतलब इस कानून का खत्म होना नहीं है, फिर भी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में लड़ी जाने वाली लंबी लड़ाई की श्रृंखला में यह जीत एक अहम कड़ी जरूर मानी जाएगी। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हिजाब ईरानी महिलाओं के लिए दोनों तरफ से मारक साबित हुई है। रजा शाह पहलवी के शासन काल का एक दौर वह भी था जब समाज को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से हिजाब को बैन कर दिया गया था। तब महिलाएं स्वेच्छा से भी सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब नहीं पहन सकती थीं। बाद में इसे पहनना अनिवार्य कर दिया गया। इन दोनों ही अतियों से जूझती ईरानी महिलाओं ने अपने कठिन संघर्ष की कामयाबी से बताया है कि लड़ाई हिजाब की नहीं बल्कि अपनी मर्जी को स्थापित करने की है। उनकी यह संघर्षगाथा निश्चित रूप से दुनिया भर की महिलाओं की ताकत बनेगी।
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