संपादकीय: नए साल से उम्मीदें

कोरोना महामारी के अभूतपूर्व संकट से जैसे-तैसे उबरी दुनिया के सिर पर साल 2022 ने जो सबसे बड़ी चुनौती लाद दी वह है यूक्रेन की जंग। जिस ग्लोबल इकॉनमी के दोबारा रफ्तार पकड़ने की उम्मीद की जा रही थी, इस युद्ध की वजह से उसके मंदी में फंसने के आसार दिखाई देने लगे। साल बीतते-बीतते तक दोनों तरफ से शांति की इच्छा तो जताई जाने लगी है, लेकिन ऐसा कोई फॉर्म्युला नहीं निकल पा रहा है, जिस पर यूक्रेन और रूस दोनों सहमत हों। नए साल में इस युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करना एक बड़ी चुनौती होगी। टकराव के दूसरे संवेदनशील क्षेत्र भारत-चीन बॉर्डर पर सामान्य स्थिति बहाल करने का दायित्व भी नए साल के ही सिर पर आ पड़ा है। गलवान घाटी में 2020 में हुई तीखी झड़प के बाद से एलएसी पर दोनों ओर से सैन्य टुकड़ियों की आमने-सामने तैनाती की जो स्थिति बनी हुई थी, उसमें इस साल जरूर थोड़ी प्रगति हासिल की गई, लेकिन तनाव कम नहीं हुआ। उलटे अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुई ताजा झड़प ने हालात फिर से बदतर बना दिए। बहरहाल, दोनों देशों के नेतृत्व के सामने चुनौती है कि अगले साल आपसी विश्वास बहाल करने वाले कुछ कदम जल्द से जल्द उठाएं ताकि सीमा पर स्थिति सामान्य हो सके। हालांकि इन अड़चनों के बीच भी भारत जहां अपनी आर्थिक स्थिति को काफी हद तक मजबूत बनाए हुए है, वहीं ग्लोबल इकॉनमी की भी उम्मीद बना हुआ है। इसी साल ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए वह दुनिया की चौथे नंबर की इकॉनमी बन गया। यूक्रेन युद्ध बंद करवाने के लिहाज से भी भारत की भूमिका को अहम माना जा रहा है। इस बीच, जी-20 की अध्यक्षता के रूप में भारत को इस मंच का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित करने का एक मौका मिला है। घरेलू मोर्चे की जहां तक बात है तो इस साल गुजरात औऱ हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस को एक-एक का स्कोर देते हुए समाप्त हुए। ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव और दिलचस्प हो गए हैं। मल्लिकार्जुन खरगे के रूप में गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष चुनकर और भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत कर कांग्रेस ने अपनी पुरानी शिथिलता त्यागने का संकेत जरूर दिया है, लेकिन आपसी मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी की दो बड़ी बीमारियां अभी बरकरार हैं। इस बीच, चीन समेत कई देशों में कोरोना जिस तेजी से सिर उठा रहा है, उसके मद्देनजर हम निश्चिंत नहीं रह सकते। कुल मिलाकर देखें तो अगले साल की उभरती हुई तस्वीर सुनहरी नहीं कही जा सकती, लेकिन पिछले कुछ वर्षों का अनुभव बताता है कि जो तस्वीर शुरू में सुनहरी दिखती है वह भी खास सुनहरी नहीं साबित होती। लिहाजा इस तस्वीर में संभावना के जो बिंदु नजर आ रहे हैं, उन्हें बड़ा बनाते हुए पूरी तस्वीर को उम्मीदों के रंग से रोशन करने की जिम्मेदारी हमें खुद अपने कंधों पर ही लेनी होगी।


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