रामपुर में अखिलेश के लिए बिन आजम सब सून, खान के बिना क्यों लड़खड़ा जाते हैं टीपू? यूं ही नहीं ताकत झोक रही BJP
रामपुर: 'अगर आप रामपुर में किसी बच्चे से भी पूछेंगे तो वह आजम खान को ही फेवरेट बताएगा। वह अभी भी इलाके में फेमस हैं। भाजपा जिस तरह से उन्हें टार्गेट कर रही है और एक के बाद एक केस दर्ज हुए जा रहे हैं। इससे हमें ही फायदा मिलता है। लोग बीजेपी और प्रशासन को संदेश देते हुए अपने प्रत्याशी के लिए वोट करते हैं। आजम यहां से 10 बार विधायक रहे हैं और लोग अभी भी उनके साथ खड़े हैं।' यह कहना है रामपुर में समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता का। बीजेपी ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन समाजवादी पार्टी को अभी भी जीत का भरोसा है। आखिर आजम में ऐसी कौन सी बात है कि अखिलेश के लिए वह बेहद जरूरी हो गए हैं? इसी साल संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में आजम खान ने जेल में रहते हुए चुनाव जीता था। इसके बाद उन्होंने रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। यहां उपचुनाव हुआ, जिसमें सपा प्रत्याशी आसिम रजा को भाजपा के घनश्याम लोधी के खिलाफ मुंह की खानी पड़ी। लोकसभा सपा के हाथ से निकलने के बाद अब आजम की विधानसभा सीट भी चली गई, जिससे यहां कि विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सामने अखिलेश के लिए आजम के रूप में एक बड़ा सहारा है, जिसके दम पर वह जीत का ख्वाब बुन रहे हैं। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आजम खान पर 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग चुका है। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान हेट स्पीच के एक मामले में उन्हें 3 साल जेल की सजा हुई है। इसलिए रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। रामपुर लोकसभा के बाद अब विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी ने जीत दर्ज करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। आजम के खिलाफ कोर्ट की लड़ाई लड़ने वाले आकाश सक्सेना को टिकट देकर कुछ यही कोशिश की गई है। मुलायम की तरह अखिलेश के साथ रहे आजम आजम हमेशा से अखिलेश के सपॉर्ट में रहे हैं। विरासत की लड़ाई में भी वह टीपू के साथ रहे। और फिर रामपुर में तो अब आजम की प्रतिष्ठा का चुनाव है। यहां से 10 बार विधायक रह चुके आजम खान स्थानीय ही नहीं, बल्कि प्रदेश स्तर पर सपा के लिए अल्पसंख्यक चेहरा रहे हैं। मुलायम के राज में सपा सरकार में आजम खान की तूती बोलती थी। मुलायम और फिर अखिलेश के कैबिनेट में आजम को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। बात रामपुर विधानसभा की करें तो आजम जब-जब यहां से प्रत्याशी बने, सपा ने अच्छे-खासे अंतर से जीत हासिल की। फिर चाहे सामने कोई भी पार्टी या कोई भी नेता क्यों ना रहा हो। इस चुनाव में आजम ने अपने परिवार को दूर ही रखा है। जीत का अंतर देख खुद समझ आ जाएगी बात साल 2012 के विधानसभा चुनाव में आजम खान की जीत का अंतर 63 हजार वोट रहा। 2017 में जब बीजेपी बहुमत से जीतकर आई, तब भी आजम ने 46 हजार के अंतर से जीत का झंडा गाड़ा। 2022 में विपरीत परिस्थितियों में लड़ते हुए आजम ने आकाश सक्सेना को 55 हजार 141 वोट के अंतर से हरा दिया। जीत के मार्जिन का रेकॉर्ड रामपुर में आजम की हैसियत बताने के लिए काफी है। आजम अहम क्यों हैं, इसे समझना हो तो 2019 में हुए उपचुनाव के आंकड़ों पर नजर डाल लेनी चाहिए। आजम के लोकसभा जीतने के बाद उनकी पत्नी तंजीन फातिमा चुनावी मैदान में उतरीं तो सही लेकिन 7 हजार 716 के मामूली अंतर से जीत सकीं। रामपुर में मैदान में डटे आजम के सारे विरोधी रामपुर से बीजेपी कैंडिडेट आकाश सक्सेना के साथ उन सभी लोगों का जुड़ाव होता दिख रहा है, जो आजम खान के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे हैं। रामपुर नवाब परिवार के सदस्य और कांग्रेस से 5 बार विधायक रहे काजिम अली खान ने आकाश सक्सेना को समर्थन दे दिया है। वहीं, बाबर खां और मोहम्मद उस्मान जैसे नेता भी आकाश के पक्ष में उतर गए हैं। वे तमाम नेता आजम के खिलाफ अब तक स्थानीय स्तर पर लड़ाई लड़ रहे थे, वे खुलकर आकाश सक्सेना के साथ आ गए हैं। रामपुर के लोगों से क्या कह रही है बीजेपी? बीजेपी ने पसमांदा मु्स्लिमों पर फोकस कर रखा है। भाजपा को भरोसा है कि आजमगढ़, कन्नौज और खुद रामपुर लोकसभा जैसे मजबूत गढ़ ढहाने के बाद विधानसभा में भी परचम लहराएगी। रामपुर में बीजेपी के नेता विकास को मुद्दा बना रह हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में कानपुर के बाद रामपुर ही दूसरा बड़ा इंडस्ट्रियल इलाका था। आजम के राज में रुके विकास को आगे बढ़ाने की बात बीजेपी कह रही है। लोगों से कमल पर ठप्पा लगाने की अपील करते हुए कहा जा रहा है कि आजम ने अपने फायदे के लिए जनता से धोखा किया। आजम के खास भी छोड़ रहे उनका साथ कानूनी शिकंजे में फंसकर रामपुर से विधायकी गंवाने वाले आजम खान को हराने के लिए बीजेपी मिशन मोड में जुट गई है। सोमवार को उन्हें झटका लगा, जब उनके खास सहयोगी और मीडिया प्रभारी रहे फसाहत अली खान उर्फ शानू ने साथ छोड़ दिया। शानू के साथ ही उनके और भी सहयोगी बीजेपी में शामिल हो गए। शानू हमेशा से आजम के खासमखास रहे हैं। उनके साथ हर परिस्थिति में खड़े रहे हैं। उन्होंने आजम का साथ नहीं देते नजर आ रहे अखिलेश को भी निशाने पर लिया था। खुद आजम की प्रतिष्ठा लगी है दांव पर यह शानू ही थे, जिन्होंने इस साल चुनाव नतीजे आने के बाद के खिलाफ बयान दिया था। शानू ने कहा था कि बीजेपी से हमारी कोई शिकायत नहीं है। जैसा सलूक वो हमारे साथ करते हैं, वैसा ही सलूक हम भी उनके साथ करते हैं। हमारी शिकायत को सपा से है। राष्ट्रीय अध्यक्ष (अखिलेश) को हमारे कपड़ों से बू आती है। अब्दुल दरी बिछाएगा, अब्दुल वोट भी देगा और अब्दुल का ही घर भी टूटेगा और वो ही जेल भी जाएगा। ऐसे में रामपुर में चुनाव जीतना अखिलेश और समाजवादी पार्टी से कहीं अधिक खुद आजम के लिए जरूरी है। उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
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